Saturday, July 25, 2015

यहां पितृ प्रसन्न होकर मनोवांछित वर देते हैं


हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला है जो वर्तमान में अम्बाला,यमुना नगर,करनाल और कैथल से घिरा हुआ है। भारत में आर्यों के आरंभिक दौर में कुरुक्षेत्र (लगभग 1500 ई. पू.) बस चुका था। महाभारत की हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ा है।
कुरुक्षेत्र का वर्णन श्रीमद् भगवद्गीता के पहले श्लोक में मिलता है। कहते हैं कभी पृथूदक तीर्थ के नजदीक बहती सरस्वती नदी में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ का पुण्यफल मिलता है।
‘पृथूदक तीर्थ’का महत्व
कुरुक्षेत्र का मुख्य तीर्थ है,’पृथूदक तीर्थ’। विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी में स्नान कर महाराज कुरु ने अष्टांग- धर्म की खेती करने के लिए भूमि जोतना आरंभ किया था। कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता है। इसका ऋग्वेद और यजुर्वेद में अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है।
इस बात के प्रमाण अस्पष्ट हैं कि महाराज कुरु ने भूमि को कहां तक जोता था। यानी कुरुक्षेत्र का प्राचीन वास्तविक विस्तार कहां तक है यह पूरी तरह प्रमाणिक नहीं रहा है।
वामन पुराण के अमूमन संपूर्ण अध्याय में पृथूदक तीर्थ के बारे में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। वामन पुराण के ही अध्याय 12 में लिखा है कि तीर्थों में यह सबसे बड़ा तीर्थ है।
इसके अतिरिक्त महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों से ज्ञात होता है कि ब्रह्मसर (एक तीर्थ) से अधिक पुण्यमयी सरस्वती नदी है,उससे अधिक सरस्वती नदी के तटवर्ती तीर्थ हैं और उनसे भी अधिक पुण्यमय है पृथूदक तीर्थ।
इस पुराण में ही आगे लिखा है कि पृथूदक तीर्थ के निकट सरस्वती नदी में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने का पुण्यफल मिलता है और स्नानकर्ता के सारे पाप धुल जाते थे।
वामन पुराण में ही वर्णित है कि भगवान शिव कहते हैं, कुरुक्षेत्र के निकट पृथूदक नाम से विख्यात तीर्थ,तीर्थों में मुख्य है। जहां सरस्वती नदी पूर्वमुखी है। यहां मृगशिरा नक्षत्र में सरस्वती नदी में स्नान करने भक्ति,तिल और मधु को मिश्रित कर पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होकर मनोवांछित वर देते हैं।

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