Saturday, March 4, 2017

भद्रा: एक परिचय

भद्रा, भद्रा वास एवं उसका फल एवं परिहार 

भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री एवं शनिदेव की सगी बहिन हैं। उनका विवाह विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप के साथ हुआ था। भद्रा का वास स्वर्गलोक, पाताललोक और पृथ्वीलोक- तीनो लोकों में मन गया है। जब चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक राशियों में होता है, तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। जब चंद्रमा कुंभ, मीन, कर्क, और सिंह राशी में होता है तो भद्रा का वश पृथ्वी लोक मैं होता है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशी में होता है तब भद्रा का वास पाताललोक में होता है।
भद्रा का वास किसी भी मुहूर्त काल में 5 घटी(2 घंटे) मुख में, 2 घटी(48 मिनट) कंठ में, 11 घटी(264 मिनट) ह्रदय में, 4 घटी (96 मिनट) नाभि में, 5 घटी (2 घंटा) कमर में और 3 घटी(72 मिनट) पुच्छ में रहता है। मुख में भद्रा कार्य का नाश करती है। कंठ में धन का नाश करती है। ह्रदय में प्राण का नाश करती है। नाभि में कलह कराती है। कमर में अर्थ भ्रंश होता है किन्तु पुच्छ में भद्रा अवश्य ही विजय एवं कार्यसिद्धि कराती है। इस प्रकार भद्रा का 12 घंटे में से लगभग 3 घटी(1 घंटा 12 मिनट) का अंतिम समय शुभकारी होता है। 


 वध, बंधन, विष, अग्नि, अस्त्र, छेदन, उच्चाटनादि कर्म, तुरंग-महिष-उष्ट्रादि के क्रियादि कार्य भद्रा मैं सिद्ध होते हैं और इनके अतिरिक्त अन्य मंगल कार्य यथा- यात्रा, रक्षा बंधन, विवाहादि संस्कार, दाहकर्म आदि भद्रा काल में निषिद्ध हैं। भद्रा में श्रावणी कर्म(यह श्रवण की पूर्णिमा को किया जाता है) तथा फाल्गुनी कर्म(होलिका दहन) का भी निषेध है। क्योकि श्रावणी कर्म कने से राजा का नाश तथा फाल्गुनी कर्म से अग्नि का भय होता है।


महर्षि भृगु के अनुसार सोमवार तथा शुक्रवार की भद्रा कल्याणकारी, शनिवार की वृश्चिकी, गुरुवार की पुण्यवती, तथा शेष वारों की भद्रिका होती है। अतः सोमवार, गुरुवार, तथा शुक्रवार की भद्रा का दोष नहीं होता है। इन दिनों में यदि भद्रा है तो शुभ कार्य किये जा सकते हैं।


भविष्य पूराण में भद्रा व्रत का विधान आया है। वहाँ कहा गया है की भद्रा व्रत करने से तथा व्रत का उद्यापन करने से व्रती के किसी कार्य में विघ्न नहीं पड़ता है और उसे अंत में सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। भद्रा के धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली एवं असुराणाम क्षयंकरी- इन बारह नामों का प्रातःकाल उच्चारण करने से व्याधि नष्ट होती है और कोई रोग नहीं होता है।
भद्रा की प्रार्थना का मंत्र इस प्रकार है-
छायासुर्यसुते देवी विष्टिरिष्टार्थदायिनी।
पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्र्प्रदा भव।।


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