Monday, March 20, 2017

दुर्लभ विरह पीड़ा विनाशक ब्रह्म-शक्ति स्तोत्रम्

।।श्रीशिवोवाच।।
ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि ! परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि !।।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे। सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले !।।
विजये शिवदे देवि ! मां प्रसीद जय-प्रदे। वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः ! प्रसीद मे।।
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले। सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके!।।
लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्त्रष्टुर्वक्षसि भारती। मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे।।
काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले। कृष्णस्य राधिके भद्रे, प्रसीद कृष्ण पूजिते!।।
समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे। सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे!।।
यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः। चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम् मां चिरम्।।
मम योग-प्रदे देवि! प्रसीद सिद्ध-योगिनि। सर्वसिद्धिस्वरूपे च, प्रसीद सिद्धिदायिनि।।
अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना। स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीड़ीहि परमेश्वरि !।।

।।फल-श्रुति।।
एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत्। न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।।

इस स्तोत्र का पाठ करने अथवा सुनने वाले को स्त्री वियोग-पीड़ा नहीं होती और कभी तक पत्नी से मतभेद नहीं होता है।

विधि – पारिवारिक कलह, रोग या अकाल-मृत्यु आदि की सम्भावना होने पर इसका पाठ करना चाहिये। प्रणय सम्बन्धों में बाधाएँ आने पर भी इसका लगातार 40 दिन तक प्रतिदिन 40 बार पाठ करने से अभीष्ट फलदायक होगा।

अपने इष्ट-देवता या भगवती माता गौरी का षोडशोपचार पूजन करके इस स्तोत्र का पाठ करें। अभीष्ट-प्राप्ति के लिये कातरता, समर्पण एवं विश्वास आवश्यक है।

नोट:- यद्यपि स्त्रोत्र लेखन में वर्तनी की शुद्धता का पूर्ण प्रयास किया है परंतु फिर भी पाठ करने से पूर्व मूल पुस्तक में लेख का अवलोकन अवश्य करें।

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